हमारा वर्तमान में ऐसा मौज का जीवन...

 

"...आप लोग कितना मौज में रहते हो।

बेफिकर बादशाह!

बिन कौड़ी बादशाह!

बेगमपुर के बादशाह!

ऐसी मौज में कोई रह न सके।

दुनिया के साहूकार से साहूकार हो वा

दुनिया में नामीग्रामी कोई व्यक्ति हो,

बहुत ही शास्त्रवादी हो,

वेदों के पाठ पढ़ने वाले हो,

नौधा भक्त हो,

नम्बरवन साइन्सदान हो,

कोई भी आक्यूपेशन वाले हो लेकिन

ऐसी मौज की जीवन नहीं हो सकती।

जिसमें मेहनत नहीं।

मुहब्बत ही मुहब्बत है।

चिंता नहीं।

लेकिन शुभचिन्तक है, शुभचिन्तन है।

ऐसी मौज की जीवन

सारे विश्व में चक्कर लगाओ,

अगर कोई मिले तो ले आओ।

इसलिए

गीत गाते हो ना।

मधुबन में, बाप के संसार में मौजें ही मौजें हैं।

खाओ तो भी मौज, सोओ तो भी मौज।

 

वर्तमान में मौज में रहते ऐसे समय के लिए तैयारी में ...

 

बाप के संसार में मौजें ही मौजें हैं।

खाओ तो भी मौज, सोओ तो भी मौज।

गोली लेकर सोने की जरूरत नहीं।

बाप के साथ सो जाओ तो गोली नहीं लेनी पड़ेगी।

अकेले सोते हो तो कहते हाय ब्लडप्रेशर है, दर्द है।

तब गोली लेनी पड़ती।

बाप साथ हो, बस बाबा आपके साथ सो रहे हैं, यह है गोली।

 

 

ऐसा भी फिर समय आयेगा जैसे आदि में दवाईयाँ नहीं चलती थी।

याद है ना।

शुरू में कितनी समय दवाईयाँ नहीं थी।

हाँ, थोड़ा मलाई मक्खन खा लिया।

दवाई नहीं खाते थे।

तो जैसे आदि में प्रैक्टिस कराई है ना।

थे तो पुराने शरीर।

अन्त में फिर वह आदि वाले दिन रिपीट होंगे।

 

 

हम ऐसा ऐवररेडी रहने का पुरूषार्थ कर रहे हैं ...

 

अन्त में फिर वह आदि वाले दिन रिपीट होंगे।

साक्षात्कार भी सब बहुत विचित्र करते रहेंगे।

बहुतों की इच्छा है ना - एक बार साक्षात्कार हो जाए।

लास्ट तक जो पक्के होंगे उन्हों को साक्षात्कार होंगे फिर वही संगठन की भट्टी होगी।

सेवा पूरी हो जायेगी।

अभी सेवा के कारण जहाँ तहाँ बिखर गये हो!

फिर नदियाँ सब सागर में समा जायेंगी।

लेकिन समय नाजुक होगा।

साधन होते हुए भी काम नहीं करेंगे।

 

 

 

इसलिए

बुद्धि की लाइन बहुत क्लीयर चाहिए।

जो टच हो जाए कि अभी क्या करना है।

एक सेकण्ड भी देरी की तो गये।

जैसे वह भी अगर बटन दबाने में एक सेकण्ड भी देरी की तो क्या रिजल्ट होगी?

यह भी अगर एक सेकण्ड टचिंग होने में देरी हुई तो फिर पहुँचना मुश्किल होगा।

वह लोग भी कितना अटेन्शन से बैठे रहते हैं।

तो यह बुद्धि की टचिंग।

 

 

 

जैसे शुरू में घर बैठे आवाज आया, बुलावा हुआ कि आओ, पहुँचो।

अभी निकलो।

और फौरन निकल पड़े।

ऐसे ही अन्त में भी बाप का आवाज पहुँचेगा।

जैसे साकार में सभी बच्चों को बुलाया।

ऐसे आकार रूप में सभी बच्चों को - ‘आओ-आओ’ का आह्वान करेंगे।

सब आना और साथ जाना।

ऐसे सदा अपनी बुद्धि क्लीयर हो और कहाँ अटेन्शन गया तो बाप का आवाज, बाप का आह्वान मिस हो जायेगा।

यह सब होना ही है।

 

 

 

टीचर्स सोच रहीं हैं - हम तो पहुँच जायेंगे।

यह भी हो सकता है कि आपको वहाँ ही बाप डायरेक्शन दें।

वहाँ कोई विशेष कार्य हो।

वहाँ कोई औरों को शक्ति देनी हो।

साथ ले जाना हो।

यह भी होगा लेकिन बाप के डायरेक्शन प्रमाण रहें।

मनमत से नहीं।

लगाव से नहीं।

हाय मेरा सेन्टर यह याद न आये।

फलाना जिज्ञासु भी साथ ले जाउँ, यह अनन्य है, मददगार है।

ऐसा भी नहीं।

किसी के लिए भी अगर रूके तो रह जायेंगे।

ऐसे तैयार हो ना!

इसको कहते हैं एवररेडी।

सदा ही सब कुछ समेटा हुआ हो।

उस समय समेटने का संकल्प नहीं आवे।

यह कर लूँ, यह कर लूँ।

 

 

 

साकार में याद है ना - जो सर्विसएबुल बच्चे थे उन्हों की स्थूल बैग बैगेज सदा तैयार होती थी।

ट्रेन पहुँचने में 5 मिनट हैं और डायरेक्शन मिलता था कि जाओ।

तो बैग बैगेज तैयार रहते थे।

एक स्टेशन पहले ट्रेन पहुँच गई है - और वह जा रहे हैं।

ऐसे भी अनुभव किया ना।

यह भी मन की स्थिति में बैग बैगेज तैयार हो।

बाप ने बुलाया और बच्चे जी हाजिर हो जाएँ।

इसको कहते हैं एवररेडी।..."